पछतावा
हर किसी की जिन्दगी में ऐसी कोई न कोई घटना घटी होती है जो हम अपनी पूरी जिन्दगी भूल नहीं सकते। कुछ घटनाएं ऐसी होती हैं जो खुशी देती है, तो कुछ ऐसी जिसे याद कर के दुख होता है, कुछ ऐसी होती हैं जिससे पछतावा भी होता है, और कुछ ऐसी होती है जो हमारी जिन्दगी बदल देती हैं और जीने का तरीका भी बदल जाता है। ऐसी ही एक घटना ने मुझे ऐसी सीख दी जिसने मेरे नजरिए और मेरे कठोर व्यवहार को बिल्कुल ही बदल कर रख दिया।
ये साल 2013 की बात है, अक्टूबर का महीना चल रहा था। मेरी ग्रेजुएशन फर्स्ट ईयर का फर्स्ट सेमेस्टर कम्पलीट हो चुका था और सेकेन्ड सेमेस्टर स्टार्ट हो चुका था। मुझे अच्छे से याद है कि मैंने अपने स्कुल टाईम में कभी भी किसी बहाने से या किसी भी छोटी मोटी बिमारी होने पर स्कुल से छुट्टी ली हो। मैं अपने घर में सबसे बड़ी हुँ और मुझे देखते हुए मेरे दोनों भाईयों ने भी मेरी तरह कभी छुट्टी नहीं ली। इसी तरह मैंने कॉलेज में आकर भी अपनी इस आदत को जारी रखा। ये उस वक्त की बात है जब डेन्गु से कई लोग बिमार पड़ रहे थे। हॉस्पिटल में मरीजों की लाइन लगी रहती थी और सारे वार्ड मरीजों से भरे रहते थे।
मुझे भी डेन्गु हुआ, शुरुआत में तो थोड़ा सा fever था, तो मैंने ज्यादा गौर नहीं किया और कॉलेज चले गई। मगर शाम होते-होते बुखार ने ऐसा हमला बोला की मेरे अन्दर चल पाने की ताकत नहीं बची थी, और कॉलेज भी था घर से 15 किलोमीटर दूर, तो क्लासेज खत्म होने के बाद मैं जैसे-तैसे कर के घर पहुंच गई।
घर पहुंचने के बाद में सीधे बिस्तर पर जा कर लेट गई। मम्मी ने कहा कि बेटा हाथ पैर धो ले खाना लगा रही हुँ, तो मैंने खाने के लिए मना कर दिया, तो मम्मी मेरे पास आई और मेरा उतरा सा चेहरा देख कर मेरे माथे पर हाथ रखा और कहा 'इतनी तेज बुखार हो रहा है और बता नहीं रही'।
मैंने कहा कि थोड़ी बहुत थकावट है इसलिए गरम हो रहा है सर, थोड़ी देर में ठीक हो जाऐगा। मगर मम्मी कहा मानने वाली थी, उन्होंने कहा, "चल मेडिकल स्टोर दवाईयां ले लेते हैं।" मैंने अलसाए मन से कहा, "मम्मी, अभी मेरा चलने का भी मन नहीं कर रहा है।" मम्मी ने कहा, "तभी तो कह रही हुँ दवाई लाने के लिए"।
अब मेरी मम्मी की आदत ऐसी है कि जो कह दिया वो कर के रहेंगी, तो इस आदत को जानते हुए मैं कुछ कह नहीं सकती थी और उनके साथ मेडिकल स्टोर जाने के लिए तैयार हो गई। चलना तो मुझसे हो नहीं पा रहा था तो मम्मी का हाथ पकड़ कर किसी तरह मेडिकल स्टोर पहुंच गई, और Pharmacist को बताया कि सूबह तो बिलकुल ठीक थी बस हलका फूलका बुखार था मगर शाम होते-होते तेज बुखार हो गया और पूरी बॉडी में pain है, और जो भी problems थी वो सब बताई, तो Pharmacist ने मेरी नब्ज को चेक किया और कहा, "ये तो डेन्गु के लक्ष्ण है डॉक्टर को check कराना होगा। मैं कुछ दवाईयां दे रहा हूँ जो अभी जा कर खानी है ताकी थोड़ा बुखार उतर जाए और कल सुबह हॉस्पिटल चले जाना blood test कराने।" हमने दवीईयां ली और घर वापस आने लगे, मगर अब मुझमें बिल्कुल ताकत नहीं बची थी और चला भी नहीं जा रहा था और साथ ही चलते-चलते रस्ते में मुझे vomiting भी आ गई।
अब किसी न किसी तरह घर पहुंच गए मगर मम्मी और ज्यादा परेशान हो गई, पापा भी घर पर नहीं थे और मुझसे कहने लगी चल हॉस्पिटल चलते हैं। मुझे अब बहुत गुस्सा आने लगा था, मगर ताकत तो थी नहीं कि चिल्ला भी सकुं तो मैं रोने लगी कि मम्मी जिद्द मत करों मैं नहीं जाऊंगी मेरा चलने का मन नहीं कर रहा। तो मम्मी ने कहा, "खाना खा कर दवाई खा ले।" अब माँ के दिल को तो आप सभी भली-भाती जानते ही है वो बिना खाना खाए अपने बच्चे को सोने नहीं देती, मेरी मम्मी ने भी यही किया, मैंने थोड़ा-बहुत खाना खाया और दवाई खा कर सो गई।
सुबह उठी तो बुखार जस-का-तस था मगर हिम्मत कर के मम्मी के साथ हॉस्पिटल चले गई। डॉक्टर ने blood चेक करने के लिए blood sample लिया और मुझे admit कर लिया। अब हॉस्पिटल में तो सारे beds भरे पड़े थे, हर bed पर दो-दो मरीज लेटे पड़े थे, एक bed था जहाँ एक मोटी सी lady लेटी हुई थी, sister ने कहा वहाँ लेट जाओ। मम्मी मुझे उस bed तक ले गई और वहाँ लिटा दिया, मगर लेट पाने के लिए वहाँ उतना space नहीं था, मैं लेटी नहीं बैठ गई। पास में ही एक bed पर दो ladies लेटी हुई थी जिसमें से एक बहुत खाँस रही थी वो उठ कर अपने सेलाइन स्टैंड (Gucose Bottle Stand) के साथ कहीं जाने लगी। जब वो वहाँ से चली गई तो उसके साथ जो lady लेटी हुई थी उसने मेरी मम्मी को कहा कि अपनी लड़की को यहाँ लिटा दिजिए (अपने bed की तरफ इशारा करते हुए)। मेरी मम्मी ने भी वैसा ही किया, मेरा हाथ पकड़ कर उनके bed तक ले गई और मुझे वहाँ लिटा दिया और फिर वो बाहर चली गई हॉस्पिटल की formalities पुरी करने।
कुछ देर बाद वो lady वापस आ गई और मुझे वहाँ लेटा देख कर मुझे वहाँ से हटने के लिए कहने लगी। लेकिन मैं वहाँ से नहीं हटी क्योंकि बिना मद्द के तो चल पाना मेरे लिए बहुत मुश्किल था। मैं वहाँ लेटी रही। वो lady गुस्से में खाँसते हुए मुझे बोलती रहीं, "हट जा ये मेरी जगह है... मेरी जगह से हट, पहले मैं लेटी थी यहाँ", मगर मैंने उसे कोई जवाब नहीं दिया बस उन्हें देखती रही। उसके साथ वाली lady मुझे इशारों-इशारों में बोलती रही कि मत हटना यहाँ से। कुछ देर बाद मुझे न जाने कितना कुछ सुनाने के बाद वो sister के पास चले गई। मेरी मम्मी जब मेरे पास आई तो मैंने ये बातें मम्मी को बताई, मम्मी ने कुछ नहीं कहा। थोड़ी देर बाद वो Lady sister के साथ आती हैं और sister एक पास खड़े stretcher पर एक bedsheet बिछाती हैं और उस lady को वहाँ लेटने के लिए कहती हैं, वो वहाँ बड़वड़ाते हुए चली जाती है और लेट जाती है।
अब मुझे भी glucose और injection लग चुका है मगर मेरी उस lady से नजर हट नहीं रही थी और वो lady भी मेरी तरफ देखते हुए बड़बड़ाए जा रही थी और ऐसा भी नहीं था कि वो लेटी रहे बार-बार उठ जाती और अपने सेलाइन स्टैंड के साथ कभी इधर जाती तो कभी उधर। ऐसा लग रहा था जैसे किसी चीज की बैचेनी सी हो रही हो। खैर फिर मैंने कुछ देर बाद उनकी तरफ ध्यान देना बन्द कर दिया।
शाम के वक्त जब नाश्ता आया तो सब ऐसे ही बाते कर रहे थे, तभी जो मेरी bed partner थी वो मेरी मम्मी को बताने लगी कि पता नहीं कौन सी बिमारी है उस lady को जब से आई है बस खाँसे जा रही है, इसलिए मैंने आपकी बेटी को यहाँ लेटने के लिए कहा। मुझे डर लग रहा था उसकी बिमारी से इसलिए मैंने ऐसा किया। ऐसे ही लेटे लेटे लोगों कि बाते सुनते-सुनते मुझे कब नींद आ गई मुझे पता नहीं चला, मैं सो गई।
जब सुबह हुई तो एक आदमी के साथ तीन बच्चे आऐ थे, बच्चों की उम्र लगभग 8 से 12 साल तक की थी। वो उस lady की family थी। वो सब उस lady के पास गए और उन्हें जगाने लगे। मगर वो उठ नहीं रही थीं तब उस lady के Husband sister के पास गए और sister ने नब्ज वगैरह चेक किया फिर डॉक्टर को बुलाया और उनके stretcher के चारों तरफ पर्दे लगा दिए। कुछ देर बाद डॉक्टर वहाँ से चले गए।
थोड़ी देर बाद उस lady के बच्चे रोने लगे। वो lady अब मर चुकीं थीं। मुझे ये नजारा देख कर बहुत शॉक लगा। मेरे मन के अन्दर उथल-पुथल start हो गई। मुझे सब याद आने लगा जो वो lady कल मुझसे कह रही थी, बार-बार उसका खाँसता चेहरा मेरी आँखों के सामने घुमने लगा। मैं ये सोचने लगी कि यार! उस lady का कल आखिरी दिन था और मैंने उसके साथ ऐसी बदसलुखी की। उसकी शायद वो आखिरी ईच्छा थी कि मैं उसकी जगह से हट जाऊँ। मैंने उसकी जगह पर कब्जा कर लिया था। वो कितना तड़प रही थी।
मुझे श्रवण कुमार के माता-पिता का अयोध्या के राजा दशरथ को पुत्र वियोग में तड़प-तड़प कर प्राण त्यागने का श्राप देने वाली बात भी याद आने लगी। मैं सोचने लगी की न जाने उसने भी मुझे अपने आखिरी वक्त में कितना कोसा होगा, न जाने कितने श्राप दिए होगें। उस दिन को मैं आज तक भुल नहीं पाई और उस दिन को याद कर के में सिहर उठती हुँ। सोचती हुँ कि काश में उस दिन वहाँ से हट जाती, काश मैंने उनकी उस आखिरी इच्छा को पूरा कर दिया होता। मगर अब कुछ बदला नहीं जा सकता। उस दिन मैंने खुद को बदलने का निश्चय किया, अपने कठोर स्वभाव को बदला और खुद से ज्यादा दूसरों को तवजों देने का निर्णय लिया।
-अर्चना केशरी
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