दोष

कपड़ों को क्यों देते हो दोष,
खराब तुम्हारी नियत होती है।
उसकी क्या गलती थी,
जिसने कुछ पल पहले ही आंखें खोली होती है।
मन में खोट तुम्हारे हैं,
और दोष हमारे पलड़े में होती है।
सुरक्षित तो हम घर में भी नहीं,
बाहर निकलने पर क्यों रोक हमारी होती है।
बुर्के में हो या साड़ी में या हो पश्चिमी परिधानों में,
इज्जत और आबरू हमारी हर कपड़ों में खतरे में होती है।
सिर्फ बच्ची और युवा लड़की ही नहीं,
बूढ़ी औरत भी खतरे में होती है।
हम क्यों झुकाए नजरें अपनी,
बुराई तो तुम्हारी नजरों में होती है।
क्यों रखे हम खुद को नियंत्रण में,
नियंत्रण में तो तुम्हारी भूख नहीं होती है।
अरे! हमें क्यों माल बोलते हो,
जानवरों जैसी हरकत तो तुम्हारी होती है।
तुम तो जानवर कहलाने के भी लायक नहीं,
हैवानों से भी बदतर तुम्हारी हरकत होती है।
जात-पात और धर्म को क्यों देते हो दोष,
तुम्हारी हैवानियत देख कर इंसानियत भी रो रही होती है।
अरे! बंद करो दोष मढ़ना हम पर,
बेशर्मी की एक हद भी होती है।

- अर्चना केशरी

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