सोच और नजरिया

सोच और नजरिया


दुनिया में कई तरह के इंसान होते है, उनकी अपनी सोच होती है, अपने विचार होते हैं, अपना नजरिया होता। जैसे एक टेबल पर एक पानी का ग्लास रखा है जिसमें की आधा पानी भरा हुआ है। मगर कोई दूसरा उस ग्लास को देखे तो वह यह भी कह सकता है कि यह ग्लास आधा खाली है। सबके अपने अपने नजरिये होते है। तो ऐसी ही एक कहानी है, एक आदमी था जो पहले बहुत गरीब था, मगर उसने बहुत महनत की और अपनी जिन्दगी में वह सब कुछ हासिल कर सका जो उसको चाहिए थी। वह बहुत ही ज्यादा successful हो गया। उसका एक बेटा था जिसे वह बहुत प्यार करता था। उसका बेटा भी उसकी बहुत इज्जत करता, उसकी हर बात मानता था। एक दिन उस व्यक्ति ने सोचा कि क्या उसका बेटा उसकी जो कमाई गई दौलत है उसकी इज्जत करता है या फिर मेरी। बचपन से मैंने उसको किसी चीज की कमी नहीं होने दी। तो जो यह मेरी कमाई गई दौलत है उसे इसकी कीमत का कैसे पता होगा, मैं जिस गरीबी से उठ कर आया हूँ उसके बारे में उसे वह क्या जानता होगा। इसी सोच की उधेड़ बुन में  उसके मन में एक उपाये सुझा। अगले दिन वह अपने बेटे को अपना गांव दिखाने ले गया। ताकि उसका बेटा जान सके कि गांव में गरीब लोग कैसे रहते हैं। पिता-पुत्र दोनों ने शहर से बाहर और गांव के नजदीक अपने फार्म हाऊस में कुछ समय बिताया। उस फार्म हाऊस में उसने रहने के लिए बस कुछ एक दो कपड़े और थोड़ा बहुत सामान रखा था। फार्म हाऊस के सामने ही एक गरीब परिवार रहता था। उसका बेटा उस परिवार से काफी घुल-मिल गया था। और वह परिवार भी उन लोगों के साथ ऐसा व्यवहार रखते जैसे वह भी उनके परिवार के हों। कभी-कभी तो वह लोग अपने घर में ही उन दोनों के लिए भोजन बनाते और उन्हें invite करते। गरीब होते हुए भी कभी ऐसा अनुभव नहीं होने दिया कि उनके पास किसी भी चीज की कमी हो। हमेशा मुस्कराते रहते और उनसे जितना बनता उनकी मद्द करते। जिस समय वह लोग गांव गए थे तब ठंड का मौसम चल रहा था। तो पिता और बेटे ने अपने रजाई और कम्बल धूप में डाल रखे थे और पड़ोसियों के साथ उनका खेत देखने घूमने चले गए। उस दिन बारिश आ गई और उनकी रजाई और कम्बलें पूरी तरह से भीग गई। अब उनके पास रात को ओड़ने के लिए कुछ नहीं था और रात के वक्त में ठंड हाड़ गला देने वाली लग रही थी। तो उन पड़ोसियों ने उनकी मद्द के लिए उनके पास जो भी extra कम्बल थी उन्हें दे दी। इसी तरह से कुछ समय अपने फार्म हाऊस में बिताने के बाद दोनो पिता-पुत्र वापस शहर लौटने लगे।


लौटते समय पिता ने बेटे से पूछा 'बेटा गांव कैसा लगा और यात्रा कैसी रही? '


बेटे ने कहा कि 'बहुत अच्छी पापा।'


फिर पिता ने पुछा 'तो तुमने देखा कि गरीब लोग कैसे रहते हैं?


बेटे ने कहा ‘हां पापा’।


उसके बाद पिता ने बेटे से वापस प्रश्न किया कि 'अच्छा बताओ इस यात्रा से तुमने क्या सीखा?' पिता यह जानना चाह रहा था कि बेटा कितना समझदार और ग्रहणशील है।


बेटे ने जवाब दिया कि 'मैंने देखा कि हमारे पास तो एक ही कुत्ता है, जबकि उनके पास चार कुत्ते हैं। हमारे घर का स्वीमिंग पुल काफी छोटा है, जबकि वह लोग बड़ी नदियों में नहाते हैं। हमारे बगीचे में महंगी- महंगी lights लगी हैं, जबकि वह तारों भरे आकाश को देख सकते हैं। हमारे घर से दूर का कुछ भी दिखाई नहीं देता है, जबकि वह दूर के पहाड़ों को आसानी से देख सकते हैं।


हमारे घर की सुरक्षा के लिए चारदीवारी और चौकीदार हैं, जबकि उनके घर की रखवाली उनके दोस्त करते हैं। पूरा गांव ऐक दूसरे घर कि रखवाली करता है। हम खुश रहने के लिए, अपना मनोरंजन करने के लिए TV, Phone, Internet इन सभी चीजों का इस्तेमाल करते हैं और वह लोग सब मिल-जुल कर कोई Program कर के या गाना गा कर, कहानियाँ सुनाकर अपना और साथ-साथ दूसरों का भी मनोरंजन करते हैं।


हमारे यहां नौकर हमारा ख्याल रखते हैं, जबकि उनके यहां पर सभी एक-दूसरे का ख्याल रखते हैं। हम अपने खाने-पीने का सामान खरीदते हैं, लेकिन वह अपने खाने का सामान खुद उगाते हैं। अरे हाँ! खाने से याद आया पड़ोस में जो छुट्की रहती थी उसने मुझे कुछ दिया था।' ऐसा बोलते हुए वह अपनी जेब में हाथ डालता है। जेब से एक कागज के पुड़िए में कुछ चीज लिपटी हुई थी, जिसे वह खोलता है। पुड़िए के अंदर इमली होती है। बेटा उसे बस खाने वाला ही होता है कि उसके पिता उसे बीच में ही टोकते हुए कहता है ‘छी, ये क्या है, तु ये क्या खा रहा है’?


हालाकिं वह जान रहा होता है कि वह चीज इमली है क्योकिं उसे बचपन में बहुत पसन्द थी। मगर समय के साथ-साथ उसकी पसन्द बदल गई या ये कह सकते है कि पैसा आने के साथ-साथ पसन्द को बदल दिया। अब उसके लिए ये इमली गरीबों की चीज हो गई थी।


उसके बेटे ने कहा, ‘पापा ये इमली है, छुट्की ने इतने प्यार से दिया था, तो मैं मना कैसे करता। और है तो ये खाने वाली चीज और खाने की चीजों को कभी मना नहीं करना चाहिए आपने ही तो सिखाया है न।’


फिर वह इमली खाने लगता है। तभी उसके पिता बोलते हैं, ‘मगर बेटे हम अपने साथ कितनी सारी चीजें लाए है वो खाओ ये क्या गरीबों वाली चीजें खा रहे हो।’


बेटा बोलता है, ‘पापा खाने की चीज कभी भी अमीरों की या गरीबों की नहीं होती। ये तो हमारी सोच होती है, वैसे भी जब हमारा कुछ खट्टा, मीठा या तीखा खाने का मन होता है तो हम बाहर से समोसे, पिज्जा, पेप्सी, या Sweets वगैरह order करते हैं और गांव में लोग ऐसी चीजें खाते हैं जो easily मिल जाती है और सस्ती भी होती हैं और आपकी इच्छा को भी पूरी करती हैं।


पिता बोलता है, ‘अच्छा –अच्छा मैं समझ गया थोड़ी सी मुझे भी दे, पूरी तू खा जाएगा क्या?’


बेटा अपना इमली के पुड़िये वाला हाथ अपने पिता के पास बड़ाता है। पिता उसमें से इमली निकालता है और खाते हुए बोलता है, ‘अच्छा और क्या चीजें थी जिसने तुम्हें प्रभावित किया?’


बेटा बोलता है, ‘पापा मुझे वहां की एक बात तो बहुत ही अच्छी लगी, शहर में तो हम सब अपनी-अपनी चार दिवारों के अंदर बंद रहते हैं किसी भी दूसरे को किसी से कुछ लेना देना नहीं होता। किसी के घर में क्या problem चल रही है किसी को किसी से कोई मतलब नहीं होता। मगर यहां लोग दूसरों की problem को अपनी खुद की problem मान लेते हैं और उस problem को दूर करनें के लिए एक दूसरे की मद्द करते हैं, एक दूसरे के काम आते है।


पिता अपने बेटे की बात बहुत ध्यान से सुन रहा था और अपने बेटे की कही गई बातों से उसको पिछली बातें भी ध्यान आ रही थी कि, जब वह गरीब था तब लोगों के यहां, जहां वह काम करता था उनके रहन सहन, उनके साधनों को देख कर उनसे जलता रहता था, सोचता रहता की इतना बड़ा घर है लोग कितने खुशी से रहते है उन्हें किसी भी चीज की कमी नहीं होती होगी। और उसके आस पास तब भी कितनी सारी खुशियां मौजूद थी जिसको उसने नजर-अंदाज किया। मगर आज उसको इस बात का बोध हुआ कि अमीरी-गरीबी साधनों पर नहीं विचारों और नजरियों में रहती है।

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